Wednesday 13 September 2017

हिमाचल प्रदेश-5 : होटलों का शहर : हिडिंबा का मंदिर

           
 कुल्लू से मनाली की चालीस किमी की दूरी सामान्यत: डेढ़ घंटे में तय होना चाहिए थी, लेकिन सामरिक महत्व के भी इस राजमार्ग को फोरलेन करने का काम जारी था, जिसके चलते दो घंटे से भी अधिक समय लग गया। इस दरम्यान सड़क और नदी किनारे के कुछ गांवों की थोक फल मंडियां देखने का मौका अनायास ही मिल गया। फल, विशेषकर सेब की, सैकड़ों दूकानें सजी हुई थीं। मनाली व आसपास के इलाकों से फल उत्पादक किसान छोटे मालवाहकों से अपनी फसल लेकर आ रहे थे, मंडियों  में नीलामी लग रही थी, और देश के दूरदराज क्षेत्रों से आए ट्रक चालक माल भरकर वापिस जाने की प्रतीक्षा में रुके हुए थे। इन बाज़ारों की सारी दूकानें अस्थायी थीं, बांस-बल्ली और तिरपाल के सहारे खड़ी की हुई। अभी मौसम है तो बाज़ार है, चहल-पहल है, दो माह बाद बर्फ गिरना शुरू होगी तो अगले कुछ माह तक की छुट्टी। कहना न होगा कि फल मंडियों की गहमागहमी के कारण भी यातायात में अपेक्षा से अधिक समय लग रहा था। रह-रहकर बारिश हो रही थी तो उसका भी असर पड़ना ही था।
मनाली की दूरी जब कोई दस-बारह किमी रह गई होगी, वहीं से होटलों व रिसोर्टों का लगभग अटूट सिलसिला प्रारंभ हो गया। एक से एक सुंदर नाम और हर तरह की सुविधा का वायदा करते उनके साइन बोर्ड। नगर की सीमा में प्रवेश किया तो चैन की सांस ली कि प्रतीक्षा समाप्त हुई, लेकिन कहां? हमारा होटल व्यास नदी के दूसरे किनारे पर प्रीणी गांव में था, जिसके लिए नगर के भीतर होटलों की कोई पांच किमी लंबी श्रृंखला पार करने के बाद पुल से दूसरी तरफ उतरे और यू-टर्न लेकर फिर होटलों के बोर्ड पढ़ते-पढ़ते अपने ठिकाने पर पहुंचे। सुबह से निकले हुए थे, खूब थक चुके थे, किंतु अपना होटल देखकर तबियत खुश हो गई। पहाड़ी के ऊपर सेव के बगीचे के बीच बसा छोटा सा होटल, जहां बालकनी से हिमालय की हिमटा पर्वत श्रृंखला के सुंदर दर्शन हो रहे थे। आसपास सेव के और बगीचे भी थे तथा निकट ही एक पहाड़ी झरना कलकल प्रवाहित हो रहा था। नदी भी सामने ही थी, लेकिन मकानों के पीछे दब जाने से दिखाई नहीं दे रही थी।
कुल्लू-मनाली की वैसे तो बहुत ख्याति है और कुल्लू का दशहरा तो विश्वप्रसिद्ध हो चुका है, किंतु यह स्थान उनके लिए मनमाफिक है जो शांतिपूर्वक अवकाश के पल बिताना चाहते हैं। मनाली ही क्यों, हिमालय से लेकर सतपुड़ा, और नीचे मलयगिरि तक के सारे हिल स्टेशन निसर्ग की ममत्व भरी गोद में विश्राम करने के लिए निमंत्रित करते हैं, लेकिन आज जो यहां आते हैं, उनके पास शायद इतना समय नहीं होता कि प्रकृति की पुकार सुन सकें। वे उपभोक्ता बनकर आते हैं और पैसा वसूल की संतुष्टि लेकर लौट जाते हैं।  शहर में बीचोंबीच क्लब हाउस नामक स्थान है। यहां एक तरह का स्थायी कार्निवाल या मेला लगा हुआ है। नहर में बोटिंग, भवन के भीतर अनेक तरह के खेल-तमाशों का इंतजाम जो सामान्यत: किसी भी फन पार्क में पाए जाते हैं। यह क्लब हाउस सैलानियों के बीच खासा लोकप्रिय है। अगर मौसम उपयुक्त हो तो पर्यटक रोहतांग दर्रे या उसके पहले सोलांग की वादी तक जाते हैं। इनको छोड़ दें तो नगर की परिधि में दो-तीन स्थल ही दर्शनीय हैं।
वशिष्ट मंदिर समुच्चय एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। जैसा कि नाम से पता चलता है यहां वशिष्ठ ऋषि का मंदिर है, जिसके गर्भगृह में उनकी प्रतिमा स्थापित है। इसका एकमंजिला मुख्य भवन काष्ठ निर्मित है और उस पर सुंदर नक्काशी की गई है। बाजू में ही गरम पानी का सोता है, जिसे दीवारें खड़ी कर दो भागों में बांट दिया गया है। एक खंड पुरुषों और दूसरा महिलाओं के स्नान हेतु। मैं कल्पना कर रहा था कि बिना इस निर्माण के यह प्राकृतिक झरना मंदिर प्रांगण की शोभा कितनी बढ़ाता होगा, लेकिन यहां तो रेलमपेल मची थी। तेल-साबुन लेकर पर्यटक कुंड के भीतर एक छोटी दीवाल खड़ी कर बना दिए गए छोटे हिस्से में स्नान कर रहे थे और बाकी बड़े हिस्से में देह से देह टकराते स्नान करते हुए अपना जीवन सार्थक करने में लगे थे। खैर, वशिष्ठ मंदिर के बाहर कुछ सीढ़ियां चढ़कर एक राममंदिर है। यहां सामने एक नया मंदिर बन गया है जिसमें पूजा-पाठ होता है; प्राचीन पाषाण मंदिर पीछे दब गया है, जिसकी कोई देखभाल नहीं है। उसके दो तरफ मटमैला पानी भरा था, याने आप मंदिर को चारों तरफ से देख भी नहीं सकते। इस प्राचीन भवन की नक्काशी भी दर्शनीय है। तीसरा इसके ठीक नीचे एक शिवमंदिर है, जो किसी मढ़िया जैसे आकार का है। इस मंदिर समुच्चय तक आने के लिए एक संकरी सड़़क है, जिस पर एक साथ दो वाहन नहीं गुजर पाते।
मनाली में सबसे सुंदर, सबसे आकर्षक, सबसे रमणीय स्थान है- वन विहार नेशनल पार्क और उसकी परिधि पर स्थित हिडिंबा देवी मंदिर। चारों तरफ देवदार के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों से घिरा काष्ठ निर्मित भवन। हिडिंबा कुल्लू रियासत की अधिष्ठात्री देवी हैं और दशहरे के समय मनाली के मंदिर से बाहर निकल उनकी यात्रा कुल्लू तक जाती है। सबसे पहले उनकी पूजा, बाद में अन्य अनुष्ठान। भीम और हिंडिबा के बेटे प्रतापी घटोत्कच का मंदिर भी कुछ सौ मीटर की दूरी पर है। इस स्थान पर प्रकृति के सान्निध्य में आप घंटों बिता सकते हैं। उस दोपहर मंदिर में दर्शनार्थियों या पर्यटकों की संख्या काफी थी, लेकिन कहीं कोई हल्ला-गुल्ला नहीं, सब नैसर्गिक सुषमा का आनंद लेने में मगन थे। दर्शन के लिए पच्चीस-पचास जनों की कतार लगी थी, हम बाहर बैंच पर इत्मीनान से बैठे थे कि भीड़ कम होगी, तब भीतर जाएंगे। इतने में फुग्गे लेकर एक छोटा बालक आया, हमारे बाजू में एक परिवार बैठा था, उनका शिशु फुग्गे के लिए ललक रहा था। बेचने वाला बालक बार-बार उसके हाथ में गुब्बारा थमाता और शिशु की मां हर बार उसे लौटा देती। 
मुझे कौतूहल हुआ। बालक से बातचीत करने लगा। पंजाब के किसी गांव से वह अपने माता-पिता के साथ आया है। पिता बढ़ई हैं, माँ मजदूरी करती है। इसकी उम्र छह-सात साल है। मनाली बाजार में कोई दूकानदार पांच सौ रुपए में पचास फुग्गे उधार दे देता है। दस रुपए नग का एक फुग्गा बीस में बेचकर यह बालक कुछ कमाई कर लेता है। उसके साथ थोड़ा बड़ा एक और बालक था। वह भी गुब्बारे लिए था। हमने एक फुग्गा खरीद लिया। बालक खुश। बोला- अपने स्मार्टफोन से हमारा फोटो खींचो। हमारे बाजू में दो युवक और बैठे थे। बंगलुरु से आए थे। उनके साथ बालक की दोस्ती पहले हो चुकी थी। वे एक बढ़िया कैमरे से तस्वीरें ले रहे थे और हमारे नन्हें मित्र को अपना वह कैमरा खुशी से इस्तेमाल करने दे रहे थे। बालक ने उनसे कहा- आपके कैमरे से मैं इनकी फोटो खींचूंगा और खटाखट हमारी दो-तीन तस्वीरें ले डालीं। इतनी छोटी उमर, इतनी समझदारी, इतना जिम्मेदारी का एहसास और इतनी ही वयसुलभ चंचलता। उस बच्चे की क्रीड़ाएं देखकर मन भर आया।
मैं बंगलुरु से आए युवकों से बातचीत करने लगा तो अपना परिचय देते हुए स्वाभाविक ही रायपुर का नाम आया। नजदीक खड़े एक अन्य युवक ने सुन लिया तो मेरे पास आया- आप रायपुर से हैं। हाँ। मैं भी बस्तर का हूं। अरे वाह, खुशी की बात है। क्या करते हो, अभी कहां रहते हो। उसने जानकारी दी कि माता-पिता जगदलपुर में हैं, वह पटियाला रहकर कोई काम करता है। इसके कुछ घंटे पहले वशिष्ठ मंदिर में महाराष्ट्र से आए एक दल के कुछ लोग मिले। वे यवतमाल, विदर्भ से थे। अच्छा, आप रायपुर से हैं। हम वहां से अपने काम के लिए मजदूर लेकर आते हैं। अभी भी पच्चीस-तीस मजदूर हैं। सड़क का काम बहुत अच्छा करते हैं। वे लोग हमारे पास खुश हैं। कई साल से आते हैं। धर्मशाला के बाद मनाली में भी रायपुर या छत्तीसगढ़ से जुड़े लोगों का मिलना एक ऐसा संयोग था, जिससे हमारे प्रदेश की आर्थिक-सामाजिक स्थिति का भी संक्षिप्त परिचय मिलता है।
हिडिंबा मंदिर एक संरक्षित विरासत स्थल है। गनीमत है कि इसके मूलस्वरूप के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ नहीं की गई है। इसके प्रवेश द्वार पर उत्कृष्ट काष्ठकला का परिचय मिलता है। गर्भगृह की छत नीची है और भीतर देवी प्रतिमा के सिवाय कोई अलंकरण या सजावट नहीं है। प्रवेशद्वार पर ही हमारी भेंट जैसलमेर से आए भाई-बहनों के एक ग्रुप से हो गई। उनके साथ भी फोटो खींचे गए। मनाली की संयोगवश हुई भेंट क्यों रोचक सिद्ध हुई, इसे आखिरी किश्त में जानेंगे।
देशबंधु में 14 सितम्बर 2017  

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